रोज शाम जब मैं पार्क में टहलने जाता हूँ,वो मिल ही जाती है..
एक प्यारी सी मुस्कान उसके खूबसूरत से चेहरे पर यूँ खिली रहती है,मानो सबकुछ फ़ीका पड़ जाए उसके सामने..
मैं हर शाम उसी को देखने जाता हूँ शायद,उसकी प्यारी सी मुस्कान से मिलने..
अब तो लगता है,जैसे उसकी मुस्कुराहट मुझे उसकी ओर खीचती है...
पता नहीं एक इंसान दूसरे इंसान के बारे में क्या सोचता है,पर मैं तो उसके साँवले से खूबसूरत चेहरे में खिलखिलाती हँसी के बारे में सोचता हूँ,उसकी हँसी से बातें करना चाहता हूँ..
पता नहीं वो मेरे बारे में क्या सोचती है...
अरे वही पार्क वाली लड़की..
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